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Photo courtesy : Google Images |
जिंदगी कि किसी किताब के किसी पन्ने पे सुनहरे अक्षरों में लिखा था की,
"इस खेल को कुछ इस तरीके से खेलना है, कि अगर खुदा भी चाहे तो भी इस खेल को खिलवाड़ में ना बदल पाए!
चाहतों को भी इस तरह उभारना है, की चाहते ही जरूरते बन जाए।
वतन के साथ एकरूप तो होना है, पर इतना भी नहीं क़ि नाम से बड़ी पहचान वतन कि बन जाए
और अगर किसी चीज कि कीमत करनी ही है, तो सबसे पहले खुद कि कीमत तय करनी है,
ताकी कोई और अपनी पूरी दौलत दे के भी, अपने सपनों को ना खरीद पाए!
इस किताब के हर पन्ने पे ऐसे रंग भरने है, कि हर पन्ना एक नई कारीगरी लगे!"
यकीन
मानिए दोस्तों...
आज उस किताब कि भी अपनी खुद कि कीमत है!
आज उस किताब कि भी अपनी खुद कि कीमत है!
-नितीश साने ©
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