"स्वतःचेच विचार संग्रहित करून ठेवावेत म्हणून आपण ते कागदावर उतरवून काढतो, आपल्या आठवणींचा तो कागद जपून ठेवतो, नंतर जेव्हा काही दिवसांनंतर किंवा काही वर्षांनंतर ते उघडून आपण वाचतो तेव्हा आपल्याच चेहऱ्यावर स्मितहास्य उमटतं! तेव्हा जो स्वतःशी संवाद होतो तो म्हणजे एकांत! असाच संवाद कधीतरी व्हावा अशी इच्छा बाळगून हे लिहितो आहे, म्हणून हा एकांत!"

Sunday 18 December 2016

सफर

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Photo courtesy : Google Images 
सफर


निकल पड़े थे इस सफ़र पर सालों पहले क्यों की किसीसे,
सपनों के हकीकत में होने के जवाब नहि मिलते...
बताया था किसीने तब...
अपने सवालों के जवाब खुद खोजे बगेर नहीं मिलते।

आज बहुत साल बीत गए इस खोज में लेकीन अभी,
जिन्हें ढूंढने चले थे वो सुकून के पल नहीं मिलते...
काश, सपने थोड़े कम देखे होते पर 
फिर...
जिंदगी को सुनहरा कहने वाले कोई गवाह भी नहीं मिलते...

कहते है की,
आराम और सुकून में बहुत फरक होता है।
सुकून से जीने वाले कभी आराम नहीं करते
और
आराम करने वाले कभी सुकून से नहीं जी पाते...
जानने के बाद भी ये अभी,
सपनों में सुकून देखने वाले कोई शख्स नही मिलते...

शुरू किया था ये सफर जिनके साथ,
वह पहचान के चेहरे अब आसपास नही दीखते...
अजनबी बहुत मिलते है,
लेकीन
मंज़िल का पता जानने वाले कोई नही मिलते...

इस जहाँ में खो जाने का एहसास होने लगता है कभी कभी
लेकिन,
अलविदा कहने वाले कोई रास्ते नही मिलते...
रास्ता एक ही है दूर दूर तक मगर,
मंजिल की असलियत में होने के अभी निशान नहीं मिलते...

मुश्किलें बहुत है इस सफ़र मे
मगर,
वो आसमान शुरू से साथ है,
चलते चलते अंधेरी खाई में गिर जाते है कभी
पर फिर भी,
उस आसमां से जुदा होने के कभी सपने नहीं आते...

रास्ते खाली है,
चलना अकेले है,
मंजिल मिले ना मिले
लेकिन,
पीछे मुड़ने के अभी खयाल नहीं आते...
पीछे मुडने के अभी खयाल नही आते!


-नितीश साने ©

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